All Grades Sant Ravidas A Brief Biography And His Famous Couplets In Hindi
Guru Ravidas Ji Maharaj
*रविदास ने क्या लिखा था?
गुरु रविदासजी मध्यकाल में एक भारतीय संत कवि सतगुरु थे। इन्हें संत शिरोमणि सत गुरु की उपाधि दी गई है। इन्होंने रविदासीया, पंथ की स्थापना की और इनके रचे गए कुछ भजन सिख लोगों के पवित्र ग्रंथ गुरुग्रंथ साहिब में भी शामिल हैं। इन्होंने जात पात का घोर खंडन किया और आत्मज्ञान का मार्ग दिखाया।
रविदास कौन समाज के थे?
Ans.रविदास जी का जन्म 15वीं शताब्दी में उत्तर प्रदेश के वाराणसी में एक मोची परिवार में हुआ. उनके पिताजी जाति के अनुसार जूते बनाने का पारंपरिक पेशा करते थे, जोकि उस काल में निम्न जाति का माना जाता था.
रविदास जी क्यों प्रसिद्ध थे?
Ans.इन्होंने रविदासीया, पंथ की स्थापना की और इनके रचे गए कुछ भजन सिख लोगों के पवित्र ग्रंथ गुरुग्रंथ साहिब में भी शामिल हैं।
संत रविदास जी किसकी भक्ति करते थे?
Ans.संत रविदासजी भगवान राम के विभिन्न स्वरुप राम, रघुनाथ, राजा रामचन्द्र, कृष्ण, गोविंद आदि नामों की भक्ति करते हुए अपनी भावनाओं को कलमबद्ध किया और समाज में बराबरी के भाव का प्रसार किया
रविदास जी का असली नाम क्या है?
Ans.गुजरात और महाराष्ट्र के लोग 'रोहिदास' और बंगाल के लोग उन्हें 'रुइदास' कहते हैं। कई पुरानी पांडुलिपियों में उन्हें रायादास, रेदास, रेमदास और रौदास के नाम से भी जाना गया है। कहते हैं कि माघ मास की पूर्णिमा को जब रविदास जी ने जन्म लिया वह रविवार का दिन था जिसके कारण इनका नाम रविदास रखा गया।
रविदास जी का गोत्र क्या है?
Ans.राजस्थानी जातियों की खोज' के लेखक रमेशचन्द्र गुणार्थी ने संत रविदास का जन्म जैसवाल गोत्र के मेघवाल वंश में माना है ।
गुरु रविदास जयंती कौन मनाता है?
Ans.गुरु रविदास जयंती उत्तर भारत में मनाए जाने वाले सबसे शुभ त्योहारों में से एक है, विशेष रूप से भारतीय राज्य पंजाब में , गुरु रविदास की जयंती का सम्मान करते हुए, गुरु रविदास एक प्रसिद्ध संत थे, जिन्हें भगत रविदास के नाम से भी जाना जाता था। बक्ती आंदोलन में उनका योगदान।
संत रविदास की कुछ प्रसिद्ध दोहे
1-मस्जिद सों कुछ घिन नहीं, मंदिर सों नहीं पिआर।
दोए मंह अल्लाह राम नहीं, कहै रैदास चमार॥
न तो मुझे मस्जिद से घृणा है और न ही मंदिर से प्रेम है। रैदास कहते हैं कि वास्तविकता यह है कि न तो मस्जिद में अल्लाह ही निवास करता है और नही मंदिर में राम का वास है।
2-माथे तिलक हाथ जपमाला, जग ठगने कूं स्वांग बनाया।
मारग छाड़ि कुमारग उहकै, सांची प्रीत बिनु राम न पाया॥
ईश्वर को पाने के लिए माथे पर तिलक लगाना और माला जपना केवल संसार को ठगने का स्वांग है। प्रेम का मार्ग छोड़कर स्वांग करने से ईश्वर की प्राप्ति नहीं होगी। सच्चे प्रेम के बिना परमात्मा को पाना असंभव है।
3-जनम जात मत पूछिए, का जात अरू पात।
रैदास पूत सब प्रभु के, कोए नहिं जात कुजात॥
रैदास कहते हैं कि किसी की जाति नहीं पूछनी चाहिए क्योंकि संसार में कोई जाति−पाँति नहीं है। सभी मनुष्य एक ही ईश्वर की संतान हैं। यहाँ कोई जाति, बुरी जाति नहीं है।
4-रैदास ब्राह्मण मति पूजिए, जए होवै गुन हीन।
पूजिहिं चरन चंडाल के, जउ होवै गुन प्रवीन॥
रैदास कहते हैं कि उस ब्राह्मण को नहीं पूजना चाहिए जो गुणहीन हो। गुणहीन ब्राह्मण की अपेक्षा गुणवान चांडाल के चरण पूजना श्रेयस्कर है।
5-जात पांत के फेर मंहि, उरझि रहइ सब लोग।
मानुषता कूं खात हइ, रैदास जात कर रोग॥
अज्ञानवश सभी लोग जाति−पाति के चक्कर में उलझकर रह गए हैं। रैदास कहते हैं कि यदि वे इस जातिवाद के चक्कर से नहीं निकले तो एक दिन जाति का यह रोग संपूर्ण मानवता को निगल जाएगा।
6-रैदास जन्म के कारनै होत न कोए नीच।
नर कूं नीच करि डारि है, ओछे करम की कीच॥
जन्म के कारण कोई भी मनुष्य छोटा नहीं होता है। मनुष्य के तुच्छ कर्मों का पाप ही उसे छोटा बनाता है॥
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CLGautam
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